पोलियो (पोलियोमायेलाइटिस) एक अत्यंत संक्रामक वायरस रोग है, जो नसों पर हमला कर सकता है और कभी-कभी बच्चों को स्थायी लंगड़ा बना सकता है। हालांकि भारत में पोलियो को 2014 में देश “पोलियो-रहित” घोषित किया गया था, लेकिन जोखिम पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ है। इसके कारण सरकार हर साल “पल्स पोलियो अभियान” (Pulse Polio) आयोजित करती है ताकि हर बच्चे को दो बूंद मौखिक पोलियो टीका (OPV) मिल सके।
2025 में भी इस अभियान को जागरूकता, निगरानी और टेक्नोलॉजी के सहयोग से आगे बढ़ाया जा रहा है।
2025 में पोलियो ड्रॉप्स: क्या नया है?
नए लक्ष्यों के साथ अभियान
– 2025 में, भारत के कई नगरपालिकाओं ने सब-राष्ट्रीय (Sub-National) पल्स पोलियो अभियान की योजना बनाई है। उदाहरण के लिए, पुणे नगर निगम (PMC) ने 12 से 17 अक्टूबर के बीच 3.12 लाख से अधिक बच्चों को पोलियो ड्राप्स देने की तैयारी की है।
– तेलंगाना में भी 12 अक्टूबर से इस अभियान की शुरुआत की गई है, 2843 टीकाकरण केंद्र स्थापित किए जाएंगे और लगभग 5.17 लाख बच्चों को कवर किया जाएगा।
– नागालैंड के Tuensang जिले में 12 अक्टूबर को पोलियो दिवस (SNID) मनाया जाना है, और 13-14 अक्टूबर को घर-घर जाकर बूंद दी जाएगी।
यह दिखाता है कि पॉलीओ अभियान अब केवल राष्ट्रीय स्तर पर नहीं बल्कि राज्य एवं जिला स्तर पर और अधिक सघन हो गया है।
निगरानी एवं रणनीति
– वैश्विक पोलियो उन्मूलन योजना (GPEI) ने 2025–2026 के लिए Global Polio Surveillance Action Plan जारी किया है, जिसमें पैथोजेन निगरानी, जल नमूना परीक्षण और तेजी से प्रतिक्रिया शामिल हैं।
– नई रणनीति (2022–2026) के अंतर्गत nOPV2 (नया मौखिक पोलियो टीका प्रकार 2) को शामिल किया जा रहा है ताकि वैक्सीन-उत्पन्न पोलियो वेरिएंट (vaccine-derived) के जोखिम को कम किया जा सके।
– भारत की यूनिवर्सल इम्युनाइज़ेशन प्रोग्राम (UIP) पोलियो के साथ अन्य वैक्सीनों को भी जोड़ती है ताकि बच्चों को समय पर कई बीमारियों से सुरक्षा मिले।
महत्व — क्यों अभी भी बूंद देना ज़रूरी है?
पड़ोसी देशों की स्थिति
भारत “पोलियो-रहित” हो सकता है, लेकिन इसके पड़ोसी देशों — जैसे पाकिस्तान — में अभी भी वायरस सक्रिय हैं। उदाहरण के लिए, 2025 में पाकिस्तान के कई जिलों में सीवेज (नाली) परीक्षण में पोलियो वायरस मिला है।
इसलिए यदि भारत में किसी बच्चे को टीका नहीं मिले, तो संक्रमण की संभावना बनी रहती है।
अभाव और जोखिम
– कई बच्चे अब भी पोलियो टीका नहीं पाते — कारण हो सकते हैं अशिक्षा, भ्रम, दूरदराज इलाके, या स्वास्थ्य पहुंच की कमी।
– मौखिक पोलियो टीका (OPV) उपयोग के दौरान बहुत दुर्लभ मामलों में वैक्सीन-उत्पन्न पोलियो (VAPP / VDPV) भी हो सकता है, इसलिए कार्यक्रमों की निगरानी और वैक्सीन चयन महत्वपूर्ण है।
“दो बूंद ज़िंदगी की” का संदेश
भारत के पोलियो अभियानों में “दो बूंद ज़िंदगी की” नारा बहुत प्रसिद्ध है — क्योंकि हर बच्चा दो बूंद OPV प्राप्त कर जीवित बचने का अवसर पाता है। Ministry of Health and Family Welfare+2iple.unicef.in+2
टीका लेने वालों के लिए जानकारी
| विषय | जानकारी |
|---|---|
| उम्र सीमा | 5 वर्ष तक के सभी बच्चों को बूंद दी जाती है |
| टीका का प्रकार | मौखिक पोलियो टीका (OPV) — 2 बूंद बचाव हेतु; नई रणनीतियों में nOPV2 शामिल है |
| टीका देने का स्थान | स्वास्थ्य केंद्र, मेटरनिटी होम, एएनएम केंद्र, घर-घर की टीम |
| अगर बच्चे ने बूंद न ली हो | स्वास्थ्यकर्मी अगले दिनों घर-घर जाकर टीका देंगे |
| सामान्य दुष्प्रभाव | हल्का बुखार, पेट खराब होना — अधिकांश मामलों में समस्या नहीं होती |
चुनौतियाँ और आगे की राह
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विसारन (Vaccine Hesitancy) या सामाजिक भ्रांतियाँ
कुछ परिवारों में टीका लेने को लेकर डर या गलत धारणाएँ हैं — जैसे “टीका से बीमारी होगी” आदि। सामाजिक जागरूकता एवं विश्वसनीय जानकारी देने की ज़रूरत है। -
दूरदराज इलाकों की पहुंच
पहाड़ी, जंगल या असुविधाजनक इलाकों में टीकाकरण दलों को पहुंच सुनिश्चित करना चुनौती है। -
निगरानी एवं प्रतिक्रिया प्रणाली को जोड़ना
यदि कहीं संक्रमण या केस मिलता है, तो तुरंत प्रतिक्रिया देना और संपर्क पहचान करना आवश्यक है। -
वैश्विक समन्वय
भारत को अपनी सीमाओं के पार पोलियो प्रकोप और प्रसार को भी रोकने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग ज़रूरी है, खासकर उन देशों के साथ जहाँ पोलियो अभी सक्रिय है।
निष्कर्ष
2025 में भी पोलियो ड्रॉप्स का महत्व उतना ही बना हुआ है जितना शुरूआत में था। हर बूंद बच्चा को पोलियो से बचाने की दिशा में एक कदम है। यदि हम सतर्क रहें, जागरूकता बनाएँ और हर बच्चे तक टीका पहुँचाएँ — तो विश्व स्तर पर एक दिन पोलियो को पूरी तरह समाप्त किया जा सकता है।
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